प्रेमचंद के साहित्य में नारी
प्रेमचंद जी के कथा साहित्य में नारी इन्हीं गुणों में मातृत्व अर्थात् ममता नारी का सर्वाेत्कृष्ट गुण माना जाता है। प्रेमचंद जी के नारी पात्रों ने इस गुण को अपनाकर जीवंत नारी, माता के रूप में प्रकट होते हैं। ओम अवस्थी ने प्रेमचंद के कथा-साहित्य में वर्णित नारी की विशेषताओं को विश्लेषित करते हुए लिखा भी है -‘‘बीसवीं शताब्दी तो है ही नारी के विलुप्त रूप की पहचान का अध्याय, जिसके आरम्भ में प्रेमचन्द का अपूर्व योगदान समाज की वेदना का ही प्रतिरूप है।’’ बीसवीं शताब्दी के पहले स्त्री, शिक्षा, स्वतंत्रता तथा सम्पत्ति के सभी अधिकारों से वंचित थी। भारतेंदु युग और द्विवेदी-युग में नारी समस्याओं, बाल-विवाह, अनमेल-विवाह, दहेज प्रथा, विधवाओं की दुर्दशा आदि की भर्त्सना की गई तथा स्त्री-शिक्षा, स्त्री स्वतंत्रता जैसे नवीन विषयों को उठाया गया, किंतु इनमें नारी के प्रति उदात्त भावों की अभिव्यंजना का सर्वथा अभाव रहा। सर्वप्रथम छायावादी कवियों ने नारी को संवेदनशील भावना से देखा और यथार्थ चित्रण एवं मानवतावाद के धरातल पर जो चित्र अंकित किए, उनमें सेवाभाव, दया, ममता संयम, सहिष्णुता, प्यार, त्याग, साहस एवं प्रेरणा के गुणों का प्राधान्य है। यहाँ यह बात विशेष धयातव्य है कि प्रेमचन्द की नारियॉं उन सामान्य नारियों का ही प्रतिनिधित्व करती है, जिनमें मानवोचित दुर्बलताएँ भी विद्यमान हैं। रामविलास शर्मा के अनुसार ‘‘प्रेमचंद के कथा-साहित्य के चरित्रों में दृष्टिगत होने वाले विरोधी गुणों, कला और मनोविज्ञान की बारीकी इस बात में दिखाई देती हैं कि वह उसे न तो पहले राक्षस बनाकर खड़ा करते हैं और ना बाद में देवता बना देते हैं।’’ इस प्रकार प्रेमचंद के नारी पात्रों को एक ओर उदात्त गुणों के परिप्रेक्ष्य में तथा दूसरी ओर मानवीय दुर्बलताओं के परिप्रेक्ष्य में निरखा परखा है। नारी पात्रों की प्रवृति और रूप विशेषताओं की प्रधानता के आधार पर आलोचकों ने प्रेमचंद के कथा-साहित्य की नारियों के मातृत्व रूप को विभिन्न वर्गो में विभाजित किया है।’’ प्रेमचंद के कथा-साहित्य में चित्रित नारी के जिस रूप को आलोचकों ने सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण एवं गरिमामय माना, वह है उसका मातृत्व रूप’’ नारी की चरमता उसके मातृत्व में है एवं नारी का सबसे श्रेष्ठ और त्यागपूर्ण स्वरूप उसके मातृत्व रूप में ही निहित है । वस्तुतः नारी के मातृत्व रूप की प्रशंसा का कारण स्वयं ‘गोदान’ में वर्णित प्रेमचंद के नारी विषयक विचार हैं। ’’नारी केवल माता है और इसके उपरांत वह जो कुछ भी है वह मातृत्व का उपक्रम मात्र है। मातृत्व संसार की सबसे बड़ी साधना है, सबसे बड़ी तपस्या, सबसे बड़ा त्याग और सबसे महान विजय है।’’ आलोचकों द्वारा मातृत्व के गुणों को तीन श्रेणियों वर्गीकृत किया गया हैः-
"प्रेमचंद के साहित्य में नारी", IJSDR - International Journal of Scientific Development and Research (www.IJSDR.org), ISSN:2455-2631, Vol.9, Issue 6, page no.1154 - 1156, June-2024, Available :https://ijsdr.org/papers/IJSDR2406134.pdf
Volume 9
Issue 6,
June-2024
Pages : 1154 - 1156
Paper Reg. ID: IJSDR_211897
Published Paper Id: IJSDR2406134
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Research Area: Arts
Country: karauli, rajasthan, India
ISSN: 2455-2631 | IMPACT FACTOR: 9.15 Calculated By Google Scholar | ESTD YEAR: 2016
An International Scholarly Open Access Journal, Peer-Reviewed, Refereed Journal Impact Factor 9.15 Calculate by Google Scholar and Semantic Scholar | AI-Powered Research Tool, Multidisciplinary, Monthly, Multilanguage Journal Indexing in All Major Database & Metadata, Citation Generator
Publisher: IJSDR(IJ Publication) Janvi Wave