INTERNATIONAL JOURNAL OF SCIENTIFIC DEVELOPMENT AND RESEARCH International Peer Reviewed & Refereed Journals, Open Access Journal ISSN Approved Journal No: 2455-2631 | Impact factor: 8.15 | ESTD Year: 2016
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BHAARAATEY GYAAN PARAMPARA KA VAISHVIK SANSKRIT PAR PRABHAAV
Authors Name:
SHIWALI TRIPATHI
, PRABHAT RANJAN SINGH
Unique Id:
IJSDR2404085
Published In:
Volume 9 Issue 4, April-2024
Abstract:
भारत भूमि महान भूमि है। इस भूमि की ज्ञान की अविरल धारा ने संपूर्ण जगत को सींचा है। भारतीय ज्ञान परंपरा प्राचीन काल से ही समृद्ध रही है। आधुनिक युग में प्रचलित ज्ञान तथा पाश्चात्य जगत से आ रही तथाकथित नवीन खोज, जो हमारे ग्रंथों में पहले से ही अल्लेखित हैं, भारतीय ज्ञान परंपरा के समृद्धशाली होने का प्रमाण देती है। संपूर्ण भारतीय ज्ञान प्रणाली व संस्कृति ऐसे अनंत सत्य से पूर्ण हैं, जो पूर्णमदः पूर्णमिदं की बाद करती हैं। भारत में विश्व को संस्कृति दी जब 5000 साल पहले कई सभ्यताएँ केवल खानाबदोश व यायावर जीवन यापन करती थी, तब भारतवर्ष में सिंधु घाटी सभ्यता में हड़प्पा संस्कृति का जन्म हुआ। विश्व का पहला विश्वविद्यालय तक्षशिला में स्थापित हुआ। चौथी शताब्दी ई०पू० में स्थापित नालंदा शिक्षा के क्षेत्र में प्राचीन भारत की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है। भारत ने विश्व को देव भाषा संस्कृत दी जो कि विश्व की सबसे शुद्धतम एवं उपयुक्त भाषा है। “संस्कृत सभी यूरोप भाषाओं की जननी है। कंप्यूटर सॉफ्टवेयर के लिए संस्कृत सबसे उपयुक्त भाषा हैं-फोर्ब्स पत्रिका की रिपोर्ट, जुलाई 1987। भारतवर्ष ने विश्व को अनेक प्रकार से योगदान देकर सभ्यता व ज्ञान के क्षेत्र में विश्व का मार्गदर्शन किया है और अनवरत रूप से करता ही जा रहा है। भारत ने विश्व को सनातन धर्म व बौद्ध, जैन और सिख पंथ दिए। भारत ने विश्व संस्कृति को गुरू-शिष्य परंपरा दी। भारतीय संस्कृति व ज्ञान का वैश्विक पटल पर प्रभाव ही कहेगें जो तनाव प्रबंधन, स्थिरता, जीवन कौशल व आत्मिक शांति के लिए विश्व भारत के ज्ञान की तरफ उन्मुख हो रहा है। भारत की सभ्यता व संस्कृति ज्ञान के प्रभाव का अनुमान हम रूस व अमेरिका की सड़कों पर हरे रामा हरे कृष्णा का जयघोष करते विदेशीजनों व भारत के प्रख्यात मंदिरों में दूर-दूर से आए विदेशी श्रद्धालुओं की भक्ति को देख कर लगा सकते है। विश्व किस प्रकार हमारे ज्ञान व हमारी संस्कृति में स्वयं की शांति व जीवन का लक्ष्य प्राप्त कर रहा है। अब हम सभी का यह कर्तव्य बनता है कि भारत वर्ष की इस अनमोल धरोहर, ज्ञान व संस्कृति का संवर्द्धन व पोषण करके रखे जिससे कि विश्व का कल्याण हो सके और आने वाली पीढ़ी भारत को विश्वगुरु के रूप में प्रतिष्ठित प्राप्त कर सके।
Keywords:
भारतीय ज्ञान परंपरा, वैश्विक संस्कृति, आत्मिक शांति।
Cite Article:
"BHAARAATEY GYAAN PARAMPARA KA VAISHVIK SANSKRIT PAR PRABHAAV", International Journal of Science & Engineering Development Research (www.ijsdr.org), ISSN:2455-2631, Vol.9, Issue 4, page no.620 - 624, April-2024, Available :http://www.ijsdr.org/papers/IJSDR2404085.pdf
Downloads:
000338171
Publication Details:
Published Paper ID: IJSDR2404085
Registration ID:210787
Published In: Volume 9 Issue 4, April-2024
DOI (Digital Object Identifier):
Page No: 620 - 624
Publisher: IJSDR | www.ijsdr.org
ISSN Number: 2455-2631
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